गिर गाय
काठियावाड़ (गुजरात) जंगलो की गीर नसल की गाय
गिर गाय गुजरात राज्य के काठियावाड़ (सौराष्ट्र) के दक्षिण में गीर नामक जंगलो में पायी जाती थी। लेकिन आज यह गुजरात के कुछ जिलो सहित देश के कुछ अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक वगेरा।
गिर गाय की शारीरिक विशेषताएं
इनका ललाट (माथा) विशेष उभरा हुआ और चौड़ा होता है, कान लम्बे और लटके हुए होते है तथा सिंग छोटे होते है। गीर नस्ल की गायों का रंग विशेष प्रकार का होता है। इनका मूल रंग सफ़ेद होता है और उसपे विविद रंगो के धब्बे होते है जो सारे शरीर पर फैले रहते है। ये धब्बहे कई गायों में बड़े बड़े और कई गायों में अत्यंत छोटे होते है। ये मध्यम से लेकर बड़े आकर तक पाई जाती हैं। इनका औसत वज़न 385 किलो ग्राम और इनकी ऊंचाई 130 सेंटी मीटर होती है। इस प्रजाति की गाय आकार में बड़ी होती है।
- गीर गाय की पीठ मजबूत, सीधी और समचौरस होती है।
- गीर गाय के कूल्हे की हड्डिया प्राय अधिक उभरी हुई होती है। पंच लम्बी होती है।
- शुद्ध गीर नश्न की गाय प्राय एक रंग की नै होती। वे काफी दूध देती है।
- गीर बैल मजबूत होते है, यद्यपी वे कुछ सुस्त और धीमे होते है।
- उनसे बहुदा गाडी खींचने का काम लिया जाता है। गीर गौ वंश नियत समय पर बच्चे देती है।
- इनकी दो बियाने में औसतन 12 से 14 महीने का अंतर होता है और ये गाय एक बियाने में औसतन 6500 से 8000 लीटर तक दूध देती है।
- इस नस्ल की “ रामो ” नामक गौने, जो कांदिवली, मुंबई की “ गोरक्षा मंडली की थी, सादे 5 से सात साल की अवस्था में 444 दिनों के एक बियाने में 6000 लीटर दूध दिया।
- इसी मंडल की “ प्राग कबीर ” नामक गौने 399 दिन के पहले बियाने में 4269 लीटर दूध दिया तथा बंगलोरे इंस्टिट्यूट की 26 नंबर की गाय ने 280 दिनों के बियाने में 8132 लीटर दूध दिया।
हमारे भारत देश में गाय को गौ माता कह कर पुकारा जाता है। कहा जाता है कि भारत में वैदिक काल से ही गाय का विशेष महत्व रहा है। आरंभ में आदान प्रदान एवं विनिमय के लिए गाय का उपयोग किया जाता था तथा मनुष्य समृद्धि की गणना गौ संख्या से की जाती थी। हिंदू लोग इनकी पूजा करतें हैं। गाय को बहुत पवित्र माना जाता है और गौ हत्या महापापों में माना जाता है।
गाय एक बहुत ही महत्वपूर्ण जीव है। यह सर्वत्र पाई जाती है। गाय का दूध ही नहीं गोमूत्र भी बहुत लाभदायक होता है। जिससे किसी भी तरह की बीमारी से बचा जा सकता है।
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गिर गाय की कीमत
गीर गाय का दाम कैसे तय करे ?
- गीर गाय की कीमत का महत्तम आधार दूध उत्पादन क्षमता पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए – मान लीजिए अगर 1 गाय एक दिन में 1 लीटर दूध देती है तो उसका दाम Rs 3,000 से ले कर 5,000 तक होगा।
गीर गाय का प्रतिदिन दूध देने की मात्रा | गीर गाय की कीमत |
10 लीटर | Rs. 30,000 to 50,000 |
15 लीटर | Rs. 50,000 to 70,000 |
20 लीटर | Rs. 70,000 to 90,000 |
अब आपको थोड़ा बहुत अंदाजा आ गया होगा कि गिर गाय की कीमत कैसे तय करते है। ध्यान रहे की गीर गाय कीमत केवल दूध देने की क्षमता पर ही निर्भर नही करता परंतु,
- गीर गाय की उम्र
- गीर गाय ने कितने बच्चे दिये है
- गीर गाय के माता-पिता के वंश के दूध का रिकार्ड
- गीर गाय कैन से मौसम मे खरीद करते है
- गीर गाय बेचने वाले की आर्थिक परिस्थिती
- गीर गाय की शारीरिक सुंदरता
गीर गाय का पालन
गीर गाय रखने की जगह
जब भी आप गौ पालन का सोच रहे हों तो सबसे पहले आपको गाय को रखने के लिए जगह की अव्यश्कता होगी। गाय को रखने के लिए ऐसे जगह का चयन करना चाहिए जो बाजार से ज्यादा दूर ना हो और उस जगह पर ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी अच्छी हो भले हीं आप बिज़नेस 2-3 गाय से शुरु कर रहे हों लेकिन जगह का चुनाव ऐसा करे जहा गाय को वहां रख सकें। गाय रखने वाली जगह पर कुछ और चीजो की जरूरत होती है जैसे कि :-
- उस जगह पर गाय के रहने के लिए केवल ऊपर से शेड बनाया हुआ हो, छोटा छोटा घर बना दें जो की चारो ओर से हवादार हो।
- जमीन चिकनी और हलकी ढलाव वाली होनी चाहिए तथा जमीन पत्थरो वाली भी हो तो उत्तम
- रहेगी ताकि पेशाब (toilet) करने के बाद मूत्र का रिसाव पत्थर से निचे की और आसानी से हो सके
- चिकनी जमीं होने पर गाय के गोबर को उठाने में आसानी होती है।
गीर गाय का उचित खाना
गीर गाय को उचित पोषण देना अनिवार्य होता है अगर उन्हें सही पोषण नहीं मिल पता है तो वे कम दूध का उत्पादन करते है। जिस प्रकार एक व्यक्ति अथवा मेहमान हमारे घर रहने अत है तो हम कुछ दिनों में उसकी पसंद नापसंद सब जान लेते है ठीक उसी प्रकार पशु आहार भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं गीर गाय पालन में। डॉक्टर के मुताबिक़ गीर गौ को उच्च पोषण की आवश्यकता अधिक होती है। गाय के खाने के सामान को रखने के लिए एक स्टोर रूम का भी प्रबंध करना चाइये। ताकि मौसम बदलने पर या मार्किट में उस खाने की कमी होने पर हम तुरंत उपलभ्ध करवा सके।
गीर गाय को देने वाला खाना कुछ इस प्रकार के होते है :-
- भूसी,
- नेवारी,
- सरसों की खल्ली,
- मक्का की दर्री,
- हरी साग सब्ज़ियाँ
- पुआल
- कुट्टी
- गाजर
- मूंगफली के छिलके आदि।
गीर गाय के लिए जल प्रबंधन
जिस जगह पर आप गाय को रख रहे हों ध्यान रहे की उस जगह पर जल का प्रबंध अच्छा होना चाहिए। गायों को नहाने के लिए या फिर उनके जगह की साफ़ सफाई के लिए पानी की बहुत खपत होती है। मगर गाय ज्यादा नहाना पसंद नहीं करती इसलिये उन्हें ज्यादा पानी से नहलाने की जरुरत नहीं होती अन्य था वो अच्छा महसूस नहीं करती और इसका असर सीधा दूध पर पड़ता है।
गीर गाय में पाए जाने वाले रोग
जब कभी भी आप गौ पालन के लिए गाय खरीदें तो रोग मुक्त गाय हीं खरीदें। इसके अलावा गाय का डॉक्टर से संपर्क बना के रखे ताकि जब कभी भी आपकी गाय बीमार हो तो फ़ौरन हीं डॉक्टर को बुला कर उनका इलाज करवा सके। गाय के आस पास से मच्छर, मक्खी या फिर कोई भी कीटाणु जिससे गाय हो हानि पहुँच सकती है उसे दूर करने के लिए गाय के पास धुंआ जला कर रख देना चाहिए। वैसे तो गीर गाय की ये विशेषता है की वह अपनी पूँछ से किसी भी मक्खी या मछर को अपने ऊपर बैठने नहीं देती। जिस जगह पर कोई भी पशु मरा हो उस जगह को फिनाइल या फिर चुने का घोल से साफ़ करना चाहिए।
गीर गाय में पाए जाने वाले रोग कुछ इस प्रकार के होते है
- गल घोंटू रोग – ये बीमारी गाय में बरसात के मौसम में ज्यादा पाई जाती है। इस बीमारी में गाय को तेज़ fever के साथ गले में सुजन, सासं लेते वक्त तेज़ आवाज़ आना आदि होता है। इस बीमारी से बचने के लिए गाय को पहले से हीं antibiotics and antibacterial टिके लगा दिए जाते है।
- मुंहपका–खुरपका रोग – यह रोग गायों पर किसी कीड़े के आक्रमण द्वारा होता है। इस बीमारी के हो जाने से गाय की मृत्यु तो नहीं होती है लेकिन गाय सूख जाती हैं। इस रोग में गाय को तेज बुखार (फीवर) हो जाता है। बीमार गाय के मुंह में, जीभ पर, होंठ के अन्दर, खुरों के बीच में छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं, जो आपस में मिलकर एक बड़ा छाला का रूप ले लेते हैं। फिर उस छाले में जख्म हो जाता है। खुर में जख्म हो जाने की वजह से गाय लंगड़ाने लगती है। इस रोग का कोई इलाज (ट्रीटमेंट) नहीं है। अतः इस रोग से बचने के लिए इसका टिका पहले हीं गाय को लगवा देना चाहिए। परन्तु हमारे आधुनिक शोधकर्ताओं ने इस परेशानी का निधान ढूंढ लिया है और कहा जाता है। होम्योपैथिक दवा के दुवारा ये बीमारी आश्चर्य जनक तरीके से ठीक हो सकती है।
- लंगड़ा बुखार–इसमें गाय को 106 डिग्री तक बुखार पहुँच जाता है। इससे गाय कमजोर हो जाती है और खाना पीना भी बंद कर देती है। गाय के पैरो के ऊपरी हिस्से में सूजन हो जाती है जिससे वे लंगड़ाने लगती है। ये सूजन गाय के पीठ पर, या कंधे पर भी हो सकती है।
- थनैला – गाय के थन में होने वाले इस बीमारी से बचने के लिए दूध निकालने से पूर्व और बाद में थनों को किसी Antiseptic Solution से धो लें। वर्ना गाय का थन सूझ के मोटा हो जाएगा और अधिक मोटा होने के कारण उसे बैठने में भी दिक्कत होगी और इसका सीधा प्रभाव उसके दूध पर भी पड़ेगा।
दूध निकालने का सही समय
गीर गाय एक दिन में दो या तीन बार दूध देती है। इसलिए आपको चाहिए की आप नित्य हीं उनका दूध निकाले। दूध निकालने का सही समय होता है :-
सुबह 5 से 7 बजे – सुबह में 5 बजे से 7 बजे के बिच का समय गाय का दूध दुहना सही रहता है। इस समय में गाय अच्छी मात्रा में दूध देती है।
शाम 4 से 6 बजे – सुबह के बाद शाम के समय में गाय का दूध निकलने से ज्यादा दूध की प्राप्ति होती है। इस तरह से आप एक दिन में 2 बार कर के ज्यादा से ज्यादा मात्रा में दूध की प्राप्ति कर सकते है।
गीर गाय का दूध कैसे निकालें – गाय को हर वक्त बांध कर नहीं रखना चाहिए उन्हें समय समय पर खुली हवा में घांस चढ़ने के लिए छोड़ देना चाहिए इससे गाय स्वस्थ रहती है और दूध भी ज्यादा देती है। गाय के दूध को दुहने का भी एक तरीका होता है। चलिए हम जानते है कैसे गाय का दूध निकला जाता है :-
- जब कभी भी गाय का दूध दुहना हो तो उन्हें शेड में ले आयें जहां उनके खाने का इन्तेजाम किया हुआ हो।
- जब गाय भूसी खाने में व्यस्त हो जाती है तो उसी वक्त उसका दूध दुह लेना चाहिए।
- दूध दुहने वक्त अपने हाँथो में हल्का सरसों तेल लगा लें इससे हांथो पर ज्यादा जोड़ नहीं पड़ता है और दूध भी आसानी से निकल जाता है।
- जो लोग इस काम में माहिर होते है वो लोग इस तरह से एक बार में कई गायों का दूध दुह लेते है।
- परन्तु गाय का दूध निकल रहा हो तो तब ध्यान दे के उस समय किसी भी प्रकार की अनवांछित ध्वनि उन्हें सुनाई न दे क्योंकि गाय दर जाती है और दूध रुक जाता है
- जब तक आप एक गाय को दुह रहें हो तब तक के लिए बांकी की गायों को घांस चढ़ने के लिए छोड़ दें।
गिर गाय के बारे मे कुछ अन्य रोचक बाते
- गीर नस्ल की गाय का मुख्य स्थान गुजरात प्रांत के दक्षिणी काठियावाड़ के गीर जंगल है। यह गुजरात के जिला जूनागढ़, भावनगर, अमरेली और राजकोट के क्षेत्र में पाई जाती है।
- यह दुधारू प्रजातियों की दूसरी श्रेणी में गिनी जाती है।
- सूखे की स्थिति में और कुदरती आपदाओं के समय भी इसके अंदर दूध देते रहने की अद्भुत शक्ति होती है।
- गीर गाय ब्राजील मेक्सिको अमेरिका वैनेजुएला आदि अनेक देशों में अधिक संख्या में ले जाई गई है।
- गीर गाय का रंग सफेद और लाल रंग का मिश्रण होता है। पूरी तरह लाल रंग की गाय को भी गीर गाय ही माना जाता है।
- गीर गाय को यदि अनुकूल परिस्थितियों के अंदर रखा जाये तो यह 25-30 किलो दूध एक में दिन में देने की क्षमता रखती है।
- ब्राजील ने 1850 में गिर गाय, अंगोल गाय और कांकरेज गाय को भारत से लेकर जाना शुरु किया था। इस समय लगभग 50-60 लाख गिर गाय सिर्फ ब्राजील में ही पाई जाती है।
- शुद्ध गिर नस्ल की पूरे गुजरात में सिर्फ 3000 गाय ही बाकी रह गई है।
- 1960 के बाद गुजरात सरकार ने गीर गाय के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। गुजरात में गीर ने एक बयात में 8200 किलोग्राम दूध दिया है। गुजरात के फार्म हाउस में गीर गाय का एक दिन में 36 किलो दूध देने का रिकॉर्ड दर्ज है जबकि ब्राजील में गिर गाय से 50 किलो दूध एक दिन में लिया जा रहा है।