ए1 व ए2 दूध की कहानी
‘गौ की महिमा’ पुस्तिका से साभार उधृत
मूल गाय के दूध में प्रोलीन अपने स्थान 67 पर बहुत दृढ़ता से अपने पड़ोसी स्थान 66 पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्युसीन से जुड़ा रहता है। परन्तु जब (ए1 दूध में) प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है, तब इस हिस्तिडीन में अपने पड़ोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुड़े रहने की प्रबलता नहीं पाई जाती है।
Hestidine, मानव शरीर की पाचन क्रिया में आसानी से टूटकर बिखर जाता है और बीसीएम 7 नामक प्रोटीन बनता है। यह बीटा कैसो मार्फिन 7 अफीम परिवार का मादक पदार्थ (Narcotic) है जो बहुत प्रभावशाली आक्सीडेण्ट एजेंट के रूप में मनुष्य के स्वास्थ्य पर मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोड़ता है। ऐसे दूध को वैज्ञानिकों ने ए1 दूध का नाम दिया है। यह दूध उन विदेशी गायों में पाया जाता जिनके डी. एन. ए. में 67वें स्थान पर प्रोलीन न होकर हिस्टिडीन होता है (दूध की एमीनो ऐसीड चेन में)।
न्युजीलैंड में जब दूध को बीसीएम 7 के कारण बड़े स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूजीलैंड के सारे डेयरी उद्योग के दूध का परीक्षण हुआ। डेयरी दूध पर किये जाने वाले प्रथम अनुसंधान में जो दूध मिला वह बीसीएम 7 से दूषित पाया गया, और वह सारा दूध ए1 कहलाया। तदुपरान्त विष रहित दूध की खोज आरम्भ हुई। बीसीएम 7 रहित दूध को ए2 नाम दिया गया। सुखद बात यह है कि देशी गाय का दूध ए2 प्रकार का पाया जाता है। देशी गाय के दूध से यह स्वास्थ्य नाशक मादक विषतत्व बीसीएम 7 नहीं बनता। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देशी गाय के दूध और दूध से बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते।
यदि भारतवर्ष का डेयरी उद्योग हमारी देशी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत तो भारत सारे विश्व डेयरी दूध व्यापार में विश्व का सबसे बड़ा पंचगव्य उत्पाद निर्यातक देश बन सकता है। यदि हमारी देशी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन को प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित पोषाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है।
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था में बच्चो को केवक ए2 दूध ही देना चाहिए। विश्व बाजार में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कोरिया, जापान और अब अमेरिका में प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेयरी दूध के दाम से कहीं अधिक हैं। ए2 दूध देने वाली गाय विश्व में सबसे अधिक भारतवर्ष में पाई जाती है।
होल्सटीन, फ्रीजियन प्रजाति की गाय, अधिक दूध देने के कारण सारे डेयरी दूध उद्योग की पसन्दीदा है। इन्हीं के दूध के कारण लगभग सारे विश्व में डेयरी का दूध ए1 पाया गया। विश्व के सारे डेयरी उद्योग और राजनेताओं की यही समस्या है कि अपने सारे ए1 दूध को एकदम कैसे अच्छे ए2 दूध में परिवर्तित करें। अतः आज विश्व का सारा डेयरी उद्योग भविष्य में केवल ए2 दूध के उत्पादन के लिए अपनी गायों की प्रजाति में नस्ल सुधार के लिए नये कार्यक्रम चला रहा है। विश्व बाजार में भारतीय नस्ल के गीर वृषभों की इसीलिए बहुत मां ग हो गई हो। साहीवाल नस्ल के अच्छे वृषभों की भी बहुत मांग बढ़ी है।
सबसे पहले यह अनुसंधान न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने किया था। परन्तु वहां के डेयरी उद्योग और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह वैज्ञानिक अनुसंधान छुपाने के प्रयत्नों से उद्विग्र होने पर, 2007 में Devil in the milk illness, health and politics A1 and A2, नाम की पुस्तक कीथ वुड्फोर्ड (Keith Woodford) द्वारा न्यूजीलैंड में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में 30 वर्षों के अध्ययन के परिणाम दिए गए हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और रोगों के अनुसंधान के आंकड़ो से यह सिद्ध किया गया है कि बीसीएम 7 युक्त ए1 दूध मानव समाज के लिए विषतुल्य है, अनेक असाध्य रोगों का कारण है।
ए1 दूध का मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
जन्म के समय बालक के शरीर में बीबीबी (ब्लड़ ब्रेन बैरियर) नहीं होता। स्तन पान कराने के बाद 3-4 वर्ष की आयु तक शरीर में यह ब्लड़ब्रेन बैरियर स्थापित हो जाता है। इसीलिए जन्मोपरान्त स्तन पान द्वारा शिशु को मिले पोषण का, बचपन में ही नहीं, बड़े हो जाने पर भी मस्तिष्क व शरीर की रोग निरोधक क्षमता, स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
बाल्य काल के रोग
भारतवर्ष ही नहीं सारे विश्व में, जन्मोपरान्त बच्चों में जो औटिज्म़ (बोध अक्षमता) और मधमेह (Diabetes Type 1) जैसे रोग बढ़ रहे हैं, उनका स्पष्ट कारण बीसीएम 7 वाला ए1 दूध है।
व्यस्क समाज के रोग
मानव शरीर के सभी सुरक्षा तंत्र विघटन से उत्पन्न (Metabolic Degenerative) रोग जैसे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा मधुमेह का प्रत्यक्ष सम्बन्ध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है। यही नहीं बुढ़ापे के मानसिक रोग भी बचपन में ग्रहण ए1 दूध के प्रभाव के रूप में भी देखे जा रहे हैं। दुनिया भर में डेयरी उद्योग आज चुपचाप अपने पशुओं की प्रजनन नीतियों में अच्छा दूध अर्थात् बीसीएम 7 मुक्त ए2 दूध के उत्पादन के आधार पर बदलाव ला रहा है।
अमेरिकी कुनिति, हमारी भूल
अमेरीकी तथा यूरोपीय देश अपने विषाक्त गौवंश से छुटकारा पाने के लिए उन्हें मंहगे मूल्यों पर भारत में भेज रहे हैं। ये हाल्स्टीन, जर्सी, एच एफ उन्हीं की देन है।
देश में दूध की जरूरत पूरी करने के नाम पर, दूध बढ़ाने के लिए अपनी सन्तानों और देशवासियों को विषैला, रोगकारक दूध पिलाना उचित कैसे हो सकता है? आखिरकार इन नीति निर्धारक नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के परिवार, बच्चे और वे स्वयं भी तो इन रोगों का शिकार बन रहे होंगे। सच तो यह है कि वे सब इन खतरों से अनजान है। जो चन्द वैज्ञानिक व नागरिक इसके बारे में जानते हैं, उनकी आवाज़ इतनी ऊँची नहीं कि सच सब तक पहुंचे। विदेशी व्यापारी ताकतें और बिका मीडिया इन तथ्यों को दबाने, छुपाने के सब सम्भव व उपाय व्यापारी ताकतों के हित में करता रहता है।
हमारा कर्तव्य, एक आह्वान
ज़रा विहंगम दृष्टि से देश व विश्व के परिदृश्य को निहारें। तेजी से सब कुछ बदल रहा है, सात्विक शक्तियां बलवान होती जा रही हैं। हम सब भी सामथ्यानुसार, सम्भव सहयोग करना शुरू करें, सफलता मिलती नजर आएगी। कम से कम अपने आसपास के लोगों को उपरोक्त तथ्यों की जानकारी देना शुरू करें, या इससे अधिक जो भी उचित लगे करें। सकारात्मक सोच, साधना, उत्साह बना रहे, देखें फिर क्या नहीं होता।
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