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विदेशी गौवंश से जैविक खेती असंभव

Exotic Breeds - Jersey HF

विदेशी गोवंश अथार्थ वह गाय की प्रजाति जो भारत से बाहर की हो उस गोवंश का दूध-घी अनेक असाध्य रोग पैदा करता हैं, उसका गोबर व गौमूत्र विषमुक्त कैसे हो सकता हैं? हमारी जानकारी के अनुसार जिन खेतों में इनकी गोबर खाद डलेगी, उनमे खेती होने के उपरांत उपज बहुत घट जायेगी, उन खेतों में उपज उससे अधिक होगी जिनमे इनके गोबर की खाद नहीं पड़ी। इस प्रकार की जैविक खेती का वर्णन अधोलिखित है |

कुछ अनुभव, कुछ सरल प्रयोग

  • गाय का गोबर हाथों पर साबुन की तरह लगाकर हाथ धोंये। यदि हाथ चिकने, मुलायम हो जाए तो उस गाय-बैल में ‘ए१’ विष नहीं हैं या कम हैं। पर यदि हाथ खुश्क हो जाए (चिकने न हो) तो वह पूरी तरह विषाक्त हैं। गजरौला के निकट एक गाँव के किसानो ने इस गाय को ‘पूतना’ नाम दिया हैं। वहीं जो श्री कृष्ण को जहरीला स्तनपान करवाने गई थी।
  • जिस खेत में विदेशी गोवंश को घुमा देंगे उसकी फसल मर जायेगी या बहुत ही कम होगी। ‘एचऍफ़’ और ‘होलिस्टिन’ में यह विष अधिक हैं। बुवाई से पहले घुमाने पर भी यही दुष्प्रभाव होगा। जिस खेत में स्वदेशी गाय-बैल को घुमा देंगे, उसकी फसल १०-२० प्रतिशत बढ़ जाएगी।
  • अनेक किसानों का अनुभव हैं कि हमारा स्वदेशी केंचुआ विदेशी गायों के गोबर में नहीं टिकता, भाग जाता हैं। वह स्वदेशी गायों के गोबर में बड़े आराम से पलता, बढ़ता रहता हैं। यानी केंचुआ भी विदेशी गोवंश के गोबर की विषाक्तता को पहचानता हैं। पर हमारे वैज्ञानिक?

कुलपति पर प्रभाव

‘गवाक्ष भारती’ में एक लेख इसी विषय पर छपा था जिसका शीर्षक था ‘समझदार केंचुए – न समझे वैज्ञानिक’। औद्यानिकी विश्विद्यालय – नौणी (सोलन) के कुलपति उस लेख को पढ़कर बड़े प्रसन्न व प्रभावित हुए कि उन्होंने गवाक्ष भारती का सदस्य बनाने की इच्छा प्रकट की। तभी से वे इस पत्रिका के संरक्षक हैं।

विदेशी केंचुआ विषाक्त?

स्मरणीय हैं कि विदेशी केंचुआ ‘एसीना फोएटीडा’ विदेशी गोवंश के विषैले गोबर में बड़े आराम से रहता हैं। इससे संदेह होता हैं कि उस केंचुए द्वारा बनी गोबर खाद और भी हानिकारक हो सकती हैं। विदेशी केचुए और उससे बनी खाद को सरकार व विदेशी एजेंसियों द्वारा बढ़ावा देने से संदेह को और अधिक बल मिलता हैं।

अपनी खाद, अपना केंचुआ

अतः सुझाव हैं कि खाद के लिए स्वदेशी गोवंश के गोबर पर थोडा गौमूत्र व देसी गुड़ घोलकर छिड़काव करें, भरपूर स्वदेशी केंचुए पैदा होंगे। खाद बनने पर इसे छानना जरुरी नहीं हैं। इसी गोबर खाद की एक दो टोकरी नई खाद बनाते समय डालें, गुड़ का घोल अल्प मात्रा में डालें, केंचुए पैदा हो जाते हैं। इस प्रकार की जैविक खेती ही सर्वश्रेष्ठ उपज प्रदान करती है | इसीलिए कहा जाता है अपनी खाद, अपना केंचुआ |

अनुपम हैं अपने गौ पंचगव्य उत्पाद

इसके अलावा गोवंश के घी, दूध, गोबर, गौमूत्र से अधरंग, उच्च रक्तचाप, माईग्रेन, स्त्रियों का प्रदर रोग, लीवर व किडनी फेलियर, हृदय रोग सरलता से ठीक होते हैं। इन पर विवरण अगले अंकों में देने का प्रयास रहेगा। पर इतना सुनिश्चित हैं कि विदेशी गोवंश और हाईब्रिड व जी.एम. बीजों के रहते जैविक खेती असंभव हैं। इतना ही नहीं, किसान की समृद्धी व सुख भी स्थाई नहीं हो सकते।

विदेशी गोवंश का समाधान

समाधान सरल हैं। जिस प्रकार विदेशी सांडों के वीर्य से कृत्रिम गर्भधारण करके हमने अपने गोवंश को बिगाड़ा हैं। उसी प्रकार अब अपनी इन गऊओं को स्वदेशी नस्ल से गर्भाधान करवाएं। यदि स्वदेशी बैल न मिलें तो पाशुपालन विभाग के सहयोग से साहिवाल, रेड सिन्धी के वीर्य का टिका लगवाए।

इस प्रक्रिया से केवल एक पीढ़ी में काफी हद तक वंश सुधार हो जायेगा। तीसरी पीढ़ी में तो लगभग पूरी तरह गोवंश स्वदेशी बनाना संभव हैं। अतः समस्या बड़ी तो हैं पर समाधान भी सरल हैं।

पंचायत प्रधान व प्रभावी लोगों के सहयोग से सरकार को प्रेरित किया जा सकता हैं कि वह स्वदेशी साड़ों या उनके वीर्य की (या दोनों की) व्यवस्था करें। कठिनाई होने पर गवाक्ष भारती कार्यालय से संपर्क करे, आशा हैं समाधान मिलेगा।

सोने से भरपूर पंचगव्य

अनेक मूल्य तत्वों के आलावा गाय के दूध, घी व मूत्र में स्वर्ण अंश भी पाए जाते हैं। आयुर्वेद के इलावा अब तो आधुनिक विज्ञान भी मनाता है कि स्वर्ण से हमारी जीवनी शक्ति, बल ओज बहुत बढ़ जाते हैं।

विदेशी/ स्वदेशीनैनो गोल्ड एच डी एल

‘जनरल ऑफ़ अमेरिकन क्रैमिकल्ज’ में छपी एक खर के अनुसार उन्होंने स्वर्ण के नैनो कणों से ‘एच. डी. एल.’ बनाया है। नार्थ वैस्ट विश्वविद्यालय द्वारा बनाये इस ‘एच. डी. एल.’ के बारे मे दावा किया गया हैं कि इसके प्रयोग से हानिकारक ‘एल. डी. एल.’ का स्तर कम होगा और तले, भुने पदार्थ रोगी खूब खा सकेंगे।

पर हम भारतीयों को अमेरिकियों के बनाये ‘एच. डी. एल.’ की क्या जरूरत हैं, हमारे पास स्वर्ण युक्त पंचगव्य वाली स्वदेशी गाय जो है। है न? नहीं है तो व्यवस्था करनी होगी, अपने घर पर संभव नहीं तो किसी किसान के पास, ताकि उसके उत्पाद हमें मिल सके। याद रहे के इसके घी से कभी कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता अर्थात यह हृदय के लिए लाभदायक है। जितना हो सके लोगो को स्वदेशी गाय के गोभर, गोमूत्र से ही जैविक खेती करने को प्रेरित करे |

हमारे शास्त्रों के अनुसार हमारी गाय की पीठ में ‘सूर्य केतु’ नाम की नाडी है जो सूर्य के प्रकाश में स्वर्ण का निर्माण करती है, जिससे इसका दूध, घी अमूल्य गुणों से भरपूर हो जाता हैं।

स्वदेशीविदेशी गोवंश की पहचान

न्यूज़ीलैंड में विषयुक्त और विषरहित (ए१ और ए२) गाय की पहचान उसकी पूंछ के बाल की डी.न.ए. जाँच से हो जाती है। इसके लिए एक २२ डॉलर की किट बनाई गई थी। भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हैं। केंद्र सरकार के शोध संस्थानों में यह जांच होती हैं पर किसानो को तो यह सेवा उपलब्द ही नहीं है। वास्तव में हमें इस जांच की जरुरत भी नहीं है। हम अपने देसी तरीकों से यह जांच सरलता से कर सकते हैं।

ऐसी हैं अपनी गौ

हमारी गाय की,

  • पीठ गोलाकार-ढलानदार (पूँछ की और)
  • झालरदार गलकंबल
  • थूथ
  • बड़े कान
  • सुन्दर आँखे
  • बाल छोटे-मोटे
  • खाल चमकीली
  • मख्खी-मच्छर उड़ने के लिए वह अपनी खाल को सरलता से प्रकम्पित कर लेती हैं
  • गोबर बन्धा
  • धारीदार
  • उसके आसपास दुर्गन्ध नहीं होती
  • मख्खियां अपेक्षाकृत काफी कम होती है।

सुक्ष्म दर्शी से देखने पर प्रति वर्ग से.मी. १५०० से १६०० छिद्र पाए जाते हैं जिससे शारीर में वाष्पिकरण सहज होता है। यह काफी अधिक गर्मी-सर्दी सह सकती है। रोग निरोधक शक्ति प्रबल है। अतः रोग तथा मृत्युदर कम है।

विदेशी गोवंश ऐसा हैं

इसके विपरीत विदेशी गोवंश के,

  • गलकंबल व थूथ (चुहड़) नहीं होती। (कुछ स्वदेशी गोवंश भी बिना थूथ या बहुत छोटी थूथ वाला है।)
  • बाल लम्बे व बारीक
  • खल चमक रहित व दुर्गान्धित
  • खाल प्रकम्पन नहीं कर सकती
  • गोबर भैंस जैसा ढीला व रेखा रहित
  • आसपास दुर्गन्ध व बहुत मख्खियां होती हैं
  • आंखें भी सुन्दर नहीं
  • अधिकांश के माथे के मध्य में सींग जैसी हड्डी भी उभरी रहती है, मानो राक्षस हो। कथा-कहानियों में राक्षसों के माथे पर सींग दिखाया जाता है।
  • पीठ सीधी व पूंछ की तरफ नोकदार हड्डियां पीछे की और निकली रहती हैं। पीठ जीतनी सीधी और पूंछ की ओर नोकदार भाग जितना अधिक उभरा हो, वह गौ उतनी विषाक्त होगी। अधिक विषयुक्त गाय की आंखें भी बहार को उभरी व डरावनी होंगी।

भारत में मिलीजुली नस्ले बढ़ती जा रही हैं। अतः कई गऊए मिलेजुले लक्षणों की होंगी। जिसमें जैसे लक्षण जितने अधिक होंगे, वह इतनी लाभदायक या हानिकारक होंगी।

डरावनी आंखें, माथे पर उभरी हुई हड्डी, बाल लम्बे पीठ सीधी नोकीले पिछाडे़ वाले लक्षणों की गाय बहुत हानिकारण मानी जानी चाहिए। इनके संपर्क, इसकी आवाज (रम्भा ने) मात्र से अनेक शारीरिक मानसिक रोग संभव हैं।

इस प्रकार हम सरलता से देशी-विदेशी, अच्छी-बुरी गोवंश की पहचान कर सकते हैं और उनके वंश सुधर के प्रयास कर सकते हैं। विशेष ध्यान रहे कि अपनी गऊओं के सिंग कभी काटने की भूल न करें। ये एक एण्टीना की तरह काम करते हैं और चन्द्रमा तथा दिव्य अन्तरिक्षीय उर्जा को ग्रहण करने में सहायता करते हैं।

-राज विशारद

 

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